पेड़ की उदासी और मेरी शर्म
पेड़ की उदासी और मेरी शर्म
आज उसने फिर कुछ फूल छोड़ दिए थे जबकि पेड़ पर गिनती के ही फूल खिले थे l कोई और होता तो सारे ही तोड़ लेता l लोग अक्सर पूरी पॉलीथीन भर जाने तक फूल इकट्ठे करते रहते हैं l पंजे के बल उचक कर चाँदनी, झुक कर गेंदा, हाथ बढ़ा कर गुड़हल और कनेर - जितने तरह के फूल मिलते हैं वे तोड़ते जाते हैं l सुबह घूमने का यह भी एक फायदा है कि पूजा के लिए फूल मिल जाते हैं l रंग- बिरंगे फूलों से सजे ठाकुर जी की पूजा एकदम जीवन्त हो उठती है l लेकिन इन दिनों भीषण गर्मी के कारण फूल खिलने कम हो गए हैं उस पर ये बहन जी तोड़ने में सकुचा रहीं हैं l तोड़ने के साथ छोड़ भी रही हैं l लगातार कई दिन से उनकी गतिविधि देख रहा था सो टोक दिया- " ये चार फूल क्यों छोड़ दिए आपने? दो चार फूलों में भला क्या श्रृंगार होगा ठाकुर जी का?"
वे ठहर कर बोलीं- "मैं चढ़ाऊँ या कोई और चढेंगे तो उसी ईश्वर को l वैसे तो फूल खिलते ही चढ़ जाता है क्योंकि उसी ने उसे खिलाया है फिर भी हम इंसान अपने आनंद के लिए इसे तोड़ते और चढ़ाते हैं सो यह आनंद और भी कुछ लोगों को मिले यह सोच कर मैं कुछ फूल तोड़ कर बाकी के छोड़ देती हूँ l "
इतना कह कर वे जाने लगीं तब तक उनके छोड़े फूल मैंने तोड़ लिए थे l जाने क्या सूझी वे पलटी और मुझे देख कर बोलीं-" सारे फूल तोड़ लेने से पेड़ उदास हो जाता है l आखिर फूल ही तो पेड़ की शोभा होते हैं l नन्ही कलियाँ पेड़ की संतान जैसी हैं और फूल उसकी युवा संतानें l "
इसके बाद वे नहीं रुकी नहीं l मैं उन्हें जाते हुए देख रहा था l पेड़ और फूलों को भी l फूल जो मेरी पॉलीथीन में भरे थेl इन्हें वापिस पेड़ पर रख दिया जाए तो.... मैं अपने खयाल पर शर्मिंदा था l
अनीता श्रीवास्तव टीकमगढ़
बहुत बढ़िया 🙏💐💐
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