सीख

 सीख

        वे पति- पत्नी जब भी मिलते, होंठों पर मधुर मुस्कान लिए होते . उनकी मुस्कान के सभी ने मन माफिक अर्थ निकाल लिए थे . किसी को लगता दोनों को अच्छी पेंशन मिलती है, बच्चे व्यवस्थित हैं, जीवन में कोई तनाव नहीं इसीलिए इतने खुश रहते हैं . किसी को लगता दोनों इस उम्र में भी स्वस्थ हैं इसलिए खुश रहते हैं . कुछ को तो यहाँ तक लगा कि वे रोज मन्दिर जाते हैं, उन पर ईश्वर की बड़ी कृपा है इसलिए मुस्कुराते रहते हैं . कुछ का अनुमान था कि उन्होंने जीवन में दुख देखा ही नहीं तभी इतने खिले- खिले से चेहरे हैं . उम्र अपनी जगह, ताज़गी अपनी जगह . 
        एक दिन मौका पा कर किसीने उनसे बात की तो पता चला उनकी पोस्टिंग भुज और धर्मपत्नी की रतलाम में थी . राज्य शासन की सेवा में होने के कारण पूरे सेवाकाल में वे दोनों अलग ही रहे . भुज में आए भूकम्प के समय उन पर छत गिरने से एक पैर गँवा बैठे फिर प्रोस्थेटिक लेग पर निर्भर हो गए . बच्चे विदेश में हैं . साल भर के संघर्ष के बाद पत्नी को कैंसर से बचा पाए . अब यहाँ अपने इस जिले में छोटा सा घर ले कर रहने लगे हैं . यहीं क्यों? यहाँ उनकी दूर के रिश्ते की बहन रहती हैं . 
        बात कानों- कान पूरी कॉलोनी में फैल गई . अब लोग कहते हैं खुश रहना कोई इनसे सीखे . 
अनीता श्रीवास्तव टीकमगढ़
मो  

Comments

  1. बहुत बढ़िया प्रेरक प्रसंग🙏🙏💐🌼🌹🌷🌱

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  2. प्रेरणादायक

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  3. अच्छी कथा, प्रेरक भी।

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